STEM यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स। यही चार स्तंभ नई नौकरियों, रिसर्च और रोजमर्रा की समस्याएँ सुलझाने की बुनियाद बनते हैं। स्कूल में अगर बच्चे प्रयोग करके सीखते हैं, कोडिंग समझते हैं, मॉडल बनाते हैं और सवाल पूछने की आदत डालते हैं, तो आगे चलकर वे सिर्फ नौकरी खोजने वाले नहीं बनते, बल्कि नौकरी बनाने वाले बनते हैं। भारत की नई शिक्षा नीति का फोकस भी इसी पर है कि रटने के बजाय बच्चे अनुभव से सीखें और विषयों को के बारे में अच्छे से समझें।
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बच्चों की बुनियादी पढ़ाई और STEM का सीधा रिश्ता
किसी भी STEM क्लास की असली ताकत तभी दिखती है जब बच्चों की नींव पक्की हो। एएसईआर 2023 की रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण इलाकों के 14 से 18 साल के ुमे वाले बच्चों को बेसिक पढ़ाई और गणित में दिक्कत होती है। जो छात्र कैलकुलेटर, नक्शे या डिजिटल टूल्स तक पहुँच रखते हैं, उनके काम करने की क्षमता बेहतर हो जाती है। इसका मतलब साफ है कि STEM का फायदा लेने के लिए स्कूलों में बुनियादी पढ़ाई और डिजिटल एक्सेस दोनों जरूरी हैं।
वर्ल्ड बैंक के लर्निंग पॉवर्टी ब्रीफ (Learning Poverty Brief) के मुताबिक प्राथमिक स्तर पर न्यूनतम दक्षता तक न पहुँचने वाले बच्चों का हिस्सा अभी भी बड़ा है। यह संकेत देता है कि नींव मजबूत करने पर ही हाई-स्किल STEM सीख अच्छी होगी।
कोडिंग और डिजिटल लर्निंग अब स्कूल तक पहुंची
सीबीएसई ने 2021 से कक्षा 6 से 8 में कोडिंग और कक्षा 8 से 12 में डेटा साइंस जैसे स्किल-आधारित विषय शुरू कर दिए हैं। इसका मकसद यही है कि बच्चे शुरुआती उम्र से लॉजिकल थिंकिंग और समस्या सुलझाने की आदत डालें। डिजिटल कंटेंट के लिए केंद्र की दीक्षा प्लेटफॉर्म भी लगातार इस्तेमाल हो रही है। इससे टीचर्स और छात्रों, दोनों के लिए पाठ तैयार करना और सीखना दोनों आसान हुआ है।
हाई-टेक लैब और एआई मॉड्यूल भी स्कूलों तक पहुँच रहे हैं। हाल में सरकार ने स्कूल छात्रों के लिए एआई स्किलिंग पहल की घोषणा की, जिसमें 6 से 12 तक के लिए शॉर्ट मॉड्यूल रखे गए हैं। राज्य स्तर पर भी कई पहलें चल रही हैं, जैसे तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में एआई और कोडिंग की क्लासें शुरू हो चुकी है।
अटल टिंकरिंग लैब और पीएम श्री स्कूल की भूमिका
अटल इनोवेशन मिशन के तहत देशभर में 10 हजार से अधिक अटल टिंकरिंग लैब्स बन चुकी हैं। यहाँ बच्चे 3डी प्रिंटिंग, रोबोटिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और प्रोटोटाइपिंग जैसे टूल्स से हाथों-हाथ सीखते हैं। 2025 में इन लैब्स का एक देशव्यापी आयोजन भी हुआ, जिसमें लाखों छात्रों ने एक साथ क्रिएटिव एक्टिविटी में हिस्सा लिया।
स्कूल इन्फ्रास्ट्रक्चर और सीखने के मॉडल को अपग्रेड करने के लिए पीएम श्री स्कूल एक रेफरेंस मॉडल बन रहे हैं। आधिकारिक डैशबोर्ड पर इन स्कूलों की संख्या और प्रगति दिखाई जाती है, जिससे राज्यों को अपनी तैयारी ट्रैक करने में मदद मिलती है।
STEM शिक्षा से नौकरियों और रिसर्च में फायदा
दुनिया भर में हाई-ग्रोथ नौकरियाँ डेटा, एआई, साइबर सिक्योरिटी, क्लाइमेट टेक और बायो-इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में बन रही हैं। स्कूल में STEM जितना मजबूत होगा, आगे कॉलेज और इंडस्ट्री में उतना ही अच्छा प्रदर्शन दिखेगा। वैश्विक तस्वीर देखें तो 2024 में STEM वर्कफोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 28 प्रतिशत रही, यानी अब भी बहुत जगह बढ़ाने की जरूरत है। भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए स्कूल स्तर से लड़कियों की ज्यादा भागीदारी बढ़ाना बेहद अहम है।
भारत में महिलाओं की STEM शिक्षा और रोजगार पर आई कई रिपोर्टें बताती हैं कि उच्च शिक्षा में भागीदारी बढ़ी है, लेकिन नौकरियों में हिस्सा कम रहता है। स्कूल की उम्र से ही रोल मॉडल, मेंटर और करियर काउंसलिंग देने पर यह गैप कम किया जा सकता है।
स्कूलों में STEM लागू करने की सबसे बड़ी चुनौतियाँ
डिजिटल और बिजली की कमी: कई सरकारी स्कूलों में स्थिर इंटरनेट, पर्याप्त कंप्यूटर या प्रोजेक्टर तक नहीं हैं। राज्यों के पायलट कार्यक्रमों में भी नेटवर्क और हार्डवेयर की दिक्कतें सामने आईं।
टीचर ट्रेनिंग और समय: विज्ञान या गणित पढ़ाने वाले हर शिक्षक को नई तकनीक, कोडिंग या डिजाइन-थिंकिंग सिखाना बड़ा काम है। कोर्स का समय सीमित होने से प्रयोगात्मक सीख को नियमित बनाना मुश्किल होता है। NEP का लक्ष्य अनुभव आधारित सीख है, पर इसके लिए सतत ट्रेनिंग और समय की जरूरत होगी।
नींव में कमी: जब बच्चे बेसिक पढ़ाई में अटकते हैं, तो हाई-ऑर्डर STEM टास्क मुश्किल लगते हैं। एएसईआर और लर्निंग पॉवर्टी के निष्कर्ष इस चुनौती को साफ दिखाते हैं।
लिंग अंतर और पहुँच: लड़कियों का स्कूल से कॉलेज तक STEM में गिरता ग्राफ और ग्रामीण इलाकों में पहुँच की समस्या एक साथ आती है। परिवार और स्कूल के सपोर्ट के बिना यह गैप कम नहीं होगा।
बच्चों के लिए STEM को सफल बनाने के उपाय
- फाउंडेशनल स्किल्स पर फोकस
कक्षा 1 से 8 तक पढ़ना, समझना और बेसिक गणित मजबूत करना। स्कूल समय में रोज 30 से 45 मिनट का रीडिंग और नंबर सेंस अभ्यास, ताकि आगे की साइंस और कोडिंग सहज लगे। - लो-कॉस्ट मेकर एक्टिविटी और स्थानीय प्रोजेक्ट
हर स्कूल में साधारण टूल्स से मॉडल बनाना, स्थानीय समस्या पर प्रोजेक्ट करना, साइंस फेयर और कम्युनिटी डेमो रखना। अटल टिंकरिंग लैब हो तो बढ़िया, वरना छोटे मेकर-कॉर्नर से भी शुरुआत हो सकती है। - टीचर-अपस्किलिंग की सतत व्यवस्था
दीक्षा जैसे प्लेटफॉर्म पर माइक्रो-कोर्स, पीयर-लर्निंग सर्कल और मेंटर टीचर नेटवर्क। हर टर्म में एक हैंड्स-ऑन यूनिट तय करें, ताकि पाठ्यक्रम का दबाव रहते हुए भी प्रयोग न रुके। - कोडिंग और डेटा को भाषा और गणित से जोड़ना
ब्लॉक-बेस्ड टूल्स से पैटर्न, चार्ट और मैप पढ़ना सिखाएँ। सीबीएसई के स्किल मॉड्यूल को स्कूल के प्रोजेक्ट-वीक से जोड़ें, ताकि बच्चे सीखी चीज़ें दिखा सकें। - एआई लिटरेसी की हल्की शुरुआत
कक्षा 6 से 12 के लिए छोटे मॉड्यूल, जिम्मेदार इस्तेमाल और वास्तविक उदाहरण। इससे बच्चों को आगे के उन्नत कोर्स समझने में सहूलियत होगी और गलतफहमियाँ कम होंगी। - लड़कियों के लिए लक्षित सपोर्ट
मेंटरिंग, विज्ञान क्लब में नेतृत्व की भूमिका, माता-पिता के साथ काउंसलिंग, और रोल मॉडल सत्र। रिपोर्टें साफ कहती हैं कि शिक्षा से नौकरी तक आते समय सबसे ज्यादा गिरावट यहीं होती है। - स्कूल इन्फ्रास्ट्रक्चर और मॉनिटरिंग
पीएम श्री जैसे मॉडल स्कूलों में जो काम कर रहा है, उसे ब्लॉक और क्लस्टर तक फैलाना। राज्य और ज़िला स्तर पर डैशबोर्ड से प्रगति ट्रैक करना और कमियों पर तुरंत कार्रवाई।
STEM शिक्षा में माता-पिता और समाज की जिम्मेदारी
STEM सिर्फ लैब और किताब तक सीमित नहीं है। घर पर बच्चों से सवाल पूछने, छोटी मरम्मत में उन्हें शामिल करने, साइंस से जुड़े वीडियो साथ में देखने और स्कूल के साइंस डे में भाग लेने से बड़ा फर्क आता है। जिन स्कूलों में माता-पिता की भागीदारी बढ़ती है, वहाँ प्रोजेक्ट की गुणवत्ता और बच्चों की रुचि दोनों बेहतर दिखती है। एएसईआर के मैदानी निष्कर्ष भी बताते हैं कि जब घर में सीखने का माहौल बनता है, तो नतीजे तेज सुधरते हैं।
निष्कर्ष:
स्कूल में अच्छी STEM शिक्षा वही है जो जिज्ञासा जगाए, बच्चों को प्रयोग करने दे, गलतियों से सीखने दे और उनके अपने शहर या गांव की समस्याओं पर काम कराए। भारत ने कोडिंग, डेटा साइंस, दीक्षा प्लेटफॉर्म, अटल टिंकरिंग लैब्स और एआई स्किलिंग जैसी पहलों से दिशा तय कर दी है। अब चुनौती यह है कि हर स्कूल तक इंटरनेट, लैब, प्रशिक्षित शिक्षक और समय पर सपोर्ट पहुँचे। नींव मजबूत हो, लड़कियाँ आगे आएँ और हर बच्चा तकनीक के साथ जिम्मेदारी से काम करना सीखे। तभी STEM पढ़ाई सच में भविष्य बदलेगी।
Resources
Education Ministry of India, The Indian Express, PIB, TOI
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