कश्मीर के बंडीपोरा जिले के गुरेज़ इलाके के किलशाय गाँव की 20 वर्षीय कुलसुम बिन मजीद ने महज 25 दिनों में कुरान के 30 पारों की हिफ़्ज़ कर एक नई मिसाल कायम की है। यह उपलब्धि न केवल कश्मीर बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है। कुलसुम की यह सफलता उनके कठिन परिश्रम, समर्पण और खुदा में विश्वास का प्रतीक है।
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शुरुआत और प्रेरणा
कुलसुम का जन्म और पालन-पोषण किलशाय गाँव में हुआ। सीमित संसाधनों और छोटे गाँव के बावजूद, उन्होंने अपने माता-पिता के आशीर्वाद और मार्गदर्शन के साथ कुरान की तालीम में उत्कृष्टता हासिल करने की ठानी। बचपन से ही उन्हें धार्मिक अध्ययन का शौक था और उनका सपना था कि वे भविष्य में अलिमा बनें। उनके माता-पिता ने हमेशा उन्हें इस दिशा में प्रेरित किया और उनका सहयोग किया।
कुलसुम ने बचपन से ही कुरान पढ़ने और समझने में गहरी रुचि दिखाई। उन्होंने छोटी उम्र से ही रोज़ाना पढ़ाई और हिफ़्ज़ के लिए समय निर्धारित करना शुरू किया। उनके अध्यापक और परिवार ने भी उन्हें लगातार मार्गदर्शन और प्रोत्साहन दिया।
25 दिनों में 30 पारों की हिफ़्ज़
कुलसुम ने कश्मीर डेस्पैच को बताया कि वह 20 अन्य लड़कियों के समूह का हिस्सा थीं, जिनकी उम्र 14 से 25 साल के बीच थी। इस समूह ने मिलकर एक वर्ष के भीतर कुरान के 30 पारों की हिफ़्ज़ का लक्ष्य तय किया। कुलसुम ने इस कार्यक्रम में अपनी मेहनत, धैर्य और अनुशासन के साथ केवल 25 दिनों में यह अद्भुत कार्य पूरा किया। उन्होंने रोज़ाना कई घंटों तक पढ़ाई की, पढ़े हुए पारों को दोहराया और सही उच्चारण पर ध्यान दिया। कठिन परिस्थितियों और मानसिक थकावट के बावजूद, उन्होंने कभी हार नहीं मानी। यह उनकी लगन और इरादे की शक्ति का प्रमाण है।
भविष्य का सपना: अलिमा बनना
कुलसुम कहती हैं, “मैं भविष्य में अलिमा बनना चाहती हूँ और अपने माता-पिता का सपना पूरा करना चाहती हूँ। उनके मार्गदर्शन और दुआओं के बिना यह संभव नहीं था।” उनके शब्दों से स्पष्ट होता है कि उनका उद्देश्य केवल हिफ़्ज़ तक सीमित नहीं है, बल्कि ज्ञान के जरिए समाज में योगदान देना उनका मुख्य लक्ष्य है।
माता-पिता का समर्थन और गर्व
कुलसुम के माता-पिता ने कहा कि उनकी बेटी ने साबित कर दिया कि यदि इरादे मजबूत हों तो कोई भी लक्ष्य कठिन नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा कि धार्मिक अध्ययन और शिक्षा दोनों को साथ लेकर चलना संभव है। उनका कहना है कि बच्चों को अनुशासन, मेहनत और खुदा पर भरोसा करना सीखना चाहिए।
कश्मीर की पहली लड़की जिसने 25 दिनों में 30 पारों की हिफ़्ज़ की
इस वर्ष की शुरुआत में कश्मीर की एक अन्य लड़की ने 38 दिनों में 30 पारों की हिफ़्ज़ पूरी की थी। कुलसुम ने इसे केवल 25 दिनों में पूरा कर कश्मीर की पहली लड़की होने का गौरव प्राप्त किया। उनकी यह उपलब्धि न केवल व्यक्तिगत बल्कि पूरे इलाके की युवा लड़कियों के लिए प्रेरणा बन गई है।
युवाओं के लिए संदेश
कुलसुम की कहानी दिखाती है कि कठिन मेहनत, अनुशासन और खुदा पर भरोसा करने से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। यह संदेश सभी युवाओं को यह प्रेरणा देता है कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए कठिनाइयों से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें चुनौती मानकर आगे बढ़ना चाहिए।
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निष्कर्ष
कुलसुम बिन मजीद की यह कहानी यह स्पष्ट रूप से साबित करती है कि हिफ़्ज़, शिक्षा और अनुशासन का सही संतुलन किसी भी व्यक्ति के जीवन में असाधारण उपलब्धियाँ दिला सकता है। केवल कठिन मेहनत और लगन ही नहीं, बल्कि समय का प्रबंधन, मानसिक तैयारी और खुदा पर भरोसा भी इस सफलता के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। कुलसुम ने यह दिखा दिया कि चाहे सीमित संसाधन हों या कठिन परिस्थितियाँ, यदि मन में दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है।
Source: Kashmir Despatch