बिहार की गलियों, कोचिंग सेंटर्स और छोटे कमरों में लाखों युवाओं का एक ही सपना पलता है, एक सरकारी नौकरी। यह सपना सिर्फ रोज़गार का नहीं बल्कि सम्मान, स्थिरता और एक सुरक्षित भविष्य की उम्मीद का प्रतीक बन गया है। लेकिन इन सपनों के पीछे एक गहरी कहानी छिपी है, भ्रष्टाचार, देरी, मानसिक तनाव और टूटते भरोसे की। यह कहानी सिर्फ बेरोज़गारी की नहीं बल्कि पूरे रोजगार तंत्र की विफलता की है।
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आंकड़ों के पीछे की सच्चाई
बिहार के युवा वर्षों से सरकारी नौकरी को जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते आए हैं। राज्य की साक्षरता दर भले करीब 60 प्रतिशत तक पहुंच गई हो, लेकिन 38 लाख से ज़्यादा युवा अब भी नौकरी की कतार में खड़े हैं। हर साल हज़ारों छात्र पटना के मुसल्लहपुर हाट जैसे कोचिंग हब में जुटते हैं। छोटे-छोटे कमरों में, जहां मुश्किल से एक मेज़ लग पाती है, वे रात भर पढ़ाई करते हैं।
28 वर्षीय विवेक कुमार की कहानी इस संघर्ष का प्रतीक है। उन्होंने 2014 में बिहार एसएससी परीक्षा पास की थी, लेकिन आज तक ज्वाइनिंग लेटर नहीं मिला। वह आज भी दूसरे एग्ज़ाम्स की तैयारी में जुटे हैं, उम्मीद अब भी ज़िंदा है लेकिन भरोसा डगमगाने लगा है। विवेक जैसे हज़ारों युवा सालों से इंतज़ार कर रहे हैं। उनके माता-पिता की चिंता और बेचैनी हर घर में झलकती है।
भ्रष्टाचार और पेपर लीक की मार
इन युवाओं की मेहनत पर सबसे बड़ा हमला होता है, भ्रष्टाचार और पेपर लीक से। बिहार के परीक्षा तंत्र में यह अब आम बात हो चुकी है। कभी परीक्षा रद्द, कभी परिणाम स्थगित। हर बार हज़ारों छात्रों की मेहनत व्यर्थ चली जाती है।
कई परिवार अपनी जमा-पूंजी कोचिंग पर खर्च कर देते हैं, पर जब परीक्षा रद्द हो जाती है तो उम्मीदें भी टूट जाती हैं। यह सिर्फ एक परीक्षा का मुद्दा नहीं बल्कि एक ऐसे सिस्टम का प्रतिबिंब है जो ईमानदार छात्रों को धोखा देता है। राजनीतिक हस्तक्षेप और कमजोर निगरानी ने इस समस्या को और गहरा बना दिया है।
परिवारों की टूटती उम्मीदें
यह संघर्ष सिर्फ छात्रों का नहीं, उनके परिवारों का भी है। गांवों से शहरों तक, गरीब परिवार अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए कर्ज लेते हैं ताकि एक दिन उनका बेटा या बेटी सरकारी नौकरी पा सके। लेकिन यह उम्मीद कई बार हताशा में बदल जाती है।
आर्थिक बोझ बढ़ता है और जब बार-बार परीक्षा टलती है या भर्ती रद्द होती है तो टूटन गहरी होती जाती है। कई युवाओं में डिप्रेशन और आत्महत्या जैसी घटनाएं बढ़ी हैं। समाजशास्त्रियों के मुताबिक यह सिर्फ बेरोज़गारी नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य का गंभीर संकट बन चुका है।
मुश्किलों के बीच उम्मीद
फिर भी बिहार के युवाओं की जिजीविषा कम नहीं हुई। वे अब भी पढ़ रहे हैं, कोचिंग ले रहे हैं और सपनों को ज़िंदा रखे हुए हैं। सरकार ने भी कुछ कदम उठाए हैं जैसे फ्री कोचिंग प्रोग्राम और ऑनलाइन क्लासेस। बिहार सरकार की योजना के तहत 45 लाख से ज़्यादा छात्रों को मुफ्त ऑनलाइन कोचिंग दी जा रही है।
लेकिन सच्चाई यह है कि बेरोज़गारी की दर, भ्रष्टाचार और औद्योगिक विकास की कमी ने युवाओं की उम्मीदों पर भारी दबाव डाल दिया है। निजी उद्योगों के अभाव में लगभग हर युवा सरकारी नौकरी को ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य मान बैठा है।
एक बड़ी प्रणालीगत समस्या
बिहार के युवाओं की यह जद्दोजहद केवल एक राज्य का संकट नहीं है बल्कि भारत के रोजगार ढांचे की गहरी खामियों को उजागर करती है। सरकारी नौकरियों पर अत्यधिक निर्भरता बताती है कि औद्योगिक विकास, पारदर्शी शासन और प्रशासनिक ईमानदारी की कितनी कमी है।
जरूरत है व्यापक सुधारों की, परीक्षा प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना, भर्ती में जवाबदेही तय करना और उद्योगों को बढ़ावा देना ताकि रोजगार के नए रास्ते खुल सकें।
यह केवल युवाओं की व्यक्तिगत कहानी नहीं बल्कि समाज की सामूहिक असफलता की गवाही है। नीति निर्माताओं से यह सवाल पूछा जाना चाहिए, क्या हम ऐसा सिस्टम बना पाए हैं जो सभी को समान अवसर दे सके।
भारत के रोजगार भविष्य की झलक
बिहार के युवाओं की स्थिति बताती है कि देश को रोजगार नीति पर नए सिरे से सोचने की जरूरत है। सरकारी नौकरी की चाह समझ में आती है, लेकिन असली विकास तभी संभव है जब उद्योग, शिक्षा और शासन तीनों का संतुलन बने।
बिहार के युवाओं की मेहनत और संघर्ष भारत की युवा आबादी की तस्वीर पेश करते हैं। वे उम्मीद भी हैं और चेतावनी भी, अगर सुधार नहीं हुए तो यह ऊर्जा हताशा में बदल सकती है।
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निष्कर्ष: बदलाव की मांग सिर्फ एक नारा नहीं, ज़रूरत है
बिहार के युवाओं की कहानी भारत की रोजगार व्यवस्था का आईना है, टूटी उम्मीदें, भ्रष्ट सिस्टम और धीमी भर्ती प्रक्रियाएं। हर पेपर लीक के पीछे एक अधूरा सपना है, हर रद्द परीक्षा के पीछे एक टूटता मन।
फिर भी इन युवाओं का जज़्बा जीवित है। वे हर कठिनाई के बावजूद हार नहीं मान रहे। उनकी मेहनत सिर्फ सहानुभूति नहीं बल्कि ठोस सुधार की हकदार है। जरूरत है पारदर्शी भर्ती, तेज़ नियुक्तियों और कठोर जवाबदेही की।
साथ ही बिहार में निजी निवेश, उद्योग और कौशल आधारित शिक्षा को बढ़ावा देना भी उतना ही जरूरी है। जब युवाओं को असली अवसर मिलेंगे तभी निराशा की जगह प्रगति लेगी।
बिहार की कहानी दरअसल भारत की कहानी है, एक युवा देश जिसकी क्षमता अपार है लेकिन जो पुराने ढांचों में जकड़ा हुआ है। अब वक्त है उस क्षमता को प्रगति में बदलने का। क्योंकि इन युवाओं के लिए सुधार कोई विकल्प नहीं बल्कि नैतिक जिम्मेदारी है।
Source: Source: Unemployed for years, craving govt job: Why story of Bihar’s youth is of struggle & despair & Bihar government signs deal for online 24×7 coaching for 45 lakh government school students
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