ज़ाहिद अली ने कम संसाधनों और कठिनाइयों के बीच अपने सपनों को सच कर दिखाया। गुझर समुदाय से ताल्लुक रखने वाले ज़ाहिद बचपन में ही अनाथ हो गए। उनका पालन-पोषण लाम नामक छोटे से गाँव में हुआ, जहां शिक्षा और साधनों की कमी थी। इन तमाम बाधाओं के बावजूद, उन्होंने NEET 2025 परीक्षा में सफलता पाई। उनके इस कामयाबी ने गाँव ही नहीं, बल्कि पूरे इलाके में गर्व और प्रेरणा की लहर दौड़ा दी है।
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समुदाय का सहारा, आशा की रोशनी
माता-पिता को खोने के बाद ज़ाहिद अली यतीम ट्रस्ट के पास रहे। यह ट्रस्ट उनके लिए सिर्फ आश्रय स्थल नहीं था, बल्कि पढ़ाई और जीवन के लिए सुरक्षित माहौल भी था। यहां के शिक्षक और देखभालकर्ता न सिर्फ मार्गदर्शन देते थे, बल्कि जरूरत पड़ने पर मदद भी करते थे। इस समर्थन ने ज़ाहिद को अनुशासन और धैर्य सिखाया, जो उनके भविष्य की सफलता की नींव बना।
कठिनाइयों के बीच मेहनत
NEET जैसी राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा हर छात्र के लिए चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन ज़ाहिद अली के लिए ये चुनौतियाँ और बड़ी थीं। महंगी कोचिंग, किताबें और इंटरनेट जैसी सुविधाएं उनके पास नहीं थीं। फिर भी उन्होंने स्थानीय मेंटर्स, उधार ली गई किताबें और अपने लंबे स्वअध्ययन की रातों का सहारा लिया। उन्होंने स्कूल की पढ़ाई, समुदाय का मार्गदर्शन और खुद का अनुशासित अभ्यास मिलाकर सफलता का रास्ता बनाया।
एक समुदाय की उम्मीद
ज़ाहिद की सफलता केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है। गुझर समुदाय जैसे आदिवासी वर्ग के लिए उच्च शिक्षा तक पहुँच मुश्किल होती है। ऐसे में ज़ाहिद अली की NEET में सफलता एक उम्मीद की किरण है। यह दिखाता है कि यदि साधनों और सहयोग की थोड़ी मदद मिले, तो सबसे कम संसाधन वाले छात्र भी राष्ट्रीय स्तर पर चमक सकते हैं।
गाँव की भूमिका
उनकी यह सफलता अकेले उनके प्रयासों से नहीं, बल्कि पूरे गाँव के समर्थन से संभव हुई। लोग किताबें उधार देते, शांत जगह पर पढ़ाई करने देते और मामूली खर्च उठाते। सोशल मीडिया और छोटे वीडियो में यह दिखता है कि कैसे लोग स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ते हुए ज़ाहिद को देखते और अब उनके नाम की खुशी में शामिल हैं।
आगे का रास्ता
NEET पास करना एक बड़ी सफलता है, लेकिन अब मेडिकल कॉलेज की राह पर ज़ाहिद अली को और भी कई चुनौतियों का सामना करना होगा। फीस, उपकरण, रहने और परीक्षा संबंधी खर्च उनके सामने हैं। स्थानीय लोग और समर्थक सरकार, NGOs और दानदाताओं से मदद की उम्मीद कर रहे हैं। यह भी दिखाता है कि आदिवासी और पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए संरचित छात्रवृत्ति और मेंटरशिप कितनी जरूरी है।
क्यों है यह कहानी महत्वपूर्ण ?
ज़ाहिद अली की कहानी सिर्फ आंकड़े नहीं है। यह ग्रामीण और आदिवासी बच्चों की वास्तविकता को सामने लाती है। साथ ही यह हमें सिखाती है कि अगर सही समर्थन मिले, तो कम संसाधन वाले छात्र भी बड़ी सफलता हासिल कर सकते हैं। एक देखभालकर्ता, अच्छी शिक्षा, स्थानीय मार्गदर्शन और समुदाय का सहयोग, इनसे बड़े सपने सच हो सकते हैं।
प्रेरणा से बदलाव की ओर
उनकी सफलता ने त्राल और आसपास के युवाओं को प्रेरित किया है। लेकिन इसे स्थायी बदलाव में बदलने के लिए सरकारी योजनाओं, विशेष कोचिंग, हॉस्टल सुविधाओं और काउंसलिंग की जरूरत है। ज़ाहिद अली का अगला कदम सिर्फ उनकी व्यक्तिगत यात्रा नहीं, बल्कि यह संकेत होगा कि सिस्टम पिछड़े और प्रतिभाशाली युवाओं को कितना आगे बढ़ाने में सक्षम है।
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अंतिम संदेश
लाम से NEET मेरिट सूची तक की यात्रा में ज़ाहिद अली ने हमें दिखाया कि मानव धैर्य और समुदायिक समर्थन कितनी बड़ी ताकत है। यह कहानी केवल परीक्षा की सफलता की नहीं है। यह उस गाँव, उस ट्रस्ट और उन शिक्षकों की कहानी है, जिन्होंने एक होनहार बच्चे को खोने नहीं दिया। जैसे-जैसे ज़ाहिद मेडिकल कॉलेज की ओर बढ़ रहे हैं, उनकी राह गुझर समुदाय और हर उस बच्चे के लिए नए अवसर खोलती है, जो कठिनाइयों के बावजूद अपने सपनों के पीछे चलने की हिम्मत रखता है।
Source: Gems of Kashmir
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